Mahakumbh 1942 के कुंभ मेले में अंग्रेजों ने प्रयागराज आने वाले यात्रियों की रेल और बस टिकटों की बिक्री पर रोक लगा दी थी। उन्हें डर था कि कहीं यह मेला क्रांति का केंद्र न बन जाए। हालांकि, इस रोक के बावजूद बड़ी संख्या में श्रद्धालु कुंभ में पहुंचे थे।
कुंभ और आजादी की लड़ाई का गहरा जुड़ाव
Mahakumbh कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन नहीं है, बल्कि इसका भारत की आजादी की लड़ाई में भी बड़ा योगदान रहा है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में प्रयागवाल तीर्थपुरोहितों ने क्रांतिकारियों का समर्थन किया।
इतिहास बताता है कि जब महारानी लक्ष्मीबाई प्रयागराज आईं, तो उन्होंने एक तीर्थपुरोहित के घर में शरण ली थी। इस वजह से कुंभ का आजादी की लड़ाई के साथ ऐतिहासिक जुड़ाव हो गया।
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Mahakumbh महात्मा गांधी और कुंभ मेला
1918 में महात्मा गांधी ने कुंभ मेले के दौरान प्रयागराज के संगम में स्नान किया। उन्होंने वहां संतों और तीर्थयात्रियों से संवाद किया। यह घटना अंग्रेजों के लिए चिंता का कारण बन गई थी, क्योंकि गांधीजी का संदेश पूरे देश में फैल रहा था।
1942 के कुंभ में अंग्रेजों की पाबंदी
1942 का कुंभ मेला ऐसे समय में हुआ जब भारत का स्वतंत्रता संग्राम तेजी पर था। अंग्रेजों को डर था कि कुंभ मेला क्रांतिकारियों का मिलन स्थल बन सकता है। इसी डर के चलते उन्होंने प्रयागराज आने वाले यात्रियों के लिए रेल और बस टिकटों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया।
अंग्रेजों ने इस रोक का कारण द्वितीय विश्व युद्ध और जापान द्वारा बमबारी का खतरा बताया। लेकिन असल में यह उनकी चाल थी ताकि कुंभ मेला आजादी की लड़ाई का केंद्र न बन सके।
Mahakumbh पाबंदी के बावजूद पहुंचे श्रद्धालु
अंग्रेजों की तमाम सख्तियों और पाबंदियों के बावजूद, बड़ी संख्या में श्रद्धालु कुंभ में पहुंचे। उनकी आस्था और आजादी का जुनून अंग्रेजों की रोक से कहीं बड़ा था।
निष्कर्ष
Mahakumbh 1942 का कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह भारतीय जनता की आजादी के प्रति अडिग भावना का प्रतीक बन गया। अंग्रेजों के डर और साजिशों के बावजूद, लोगों की आस्था और संघर्ष ने कुंभ को ऐतिहासिक बना दिया। यह घटना हमें हमारी संघर्षशील विरासत और एकता की याद दिलाती है।
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