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Premanand Ji Maharaj: बेटी के घर का पानी पीने से पाप लगता है या नहीं? प्रेमानंद जी महाराज ने दी सच्चाई

Premanand Ji Maharaj हाल ही में प्रेमानंद जी महाराज के सत्संग में एक महिला ने एक सवाल पूछा, जो भारतीय समाज की परंपराओं और मान्यताओं …

Written by Manju Rani
Premanand Ji Maharaj

Premanand Ji Maharaj हाल ही में प्रेमानंद जी महाराज के सत्संग में एक महिला ने एक सवाल पूछा, जो भारतीय समाज की परंपराओं और मान्यताओं से जुड़ा था। महिला ने पूछा, “क्या माता-पिता के लिए बेटी के घर का पानी पीना पाप माना जाता है?” महिला ने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए बताया कि उसकी मां की तबीयत ठीक नहीं रहती और वह अपनी मां की सेवा करना चाहती है, लेकिन समाज और परिवार की मान्यताओं के चलते उसकी मां बेटी के घर जाने से कतराती हैं। वह अक्सर बिना कुछ खाए-पिए वापस लौट जाती हैं। इस सवाल पर महाराज जी ने अपना दृष्टिकोण दिया, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

Premanand Ji Maharaj शास्त्रों और समाज की धारणाओं के खिलाफ प्रेमानंद जी का जवाब

Premanand Ji Maharaj ने इस सवाल का जवाब बहुत ही शांतिपूर्वक और स्पष्ट तरीके से दिया। उन्होंने शास्त्रों और सनातन धर्म के सिद्धांतों पर आधारित जवाब देते हुए कहा, “शास्त्रों में बेटा और बेटी में कोई भेदभाव नहीं किया गया है। सनातन धर्म में दोनों को समान सम्मान प्राप्त है। इसलिए बेटी के घर का पानी पीने को लेकर जो समाज में कुछ लोग यह मानते हैं, वह सिर्फ समाज की बनाई हुई एक गलत धारणा है, न कि धर्म या आध्यात्मिकता से जुड़ा कोई सिद्धांत।”

उन्होंने आगे कहा, “माता-पिता का सेवा करना बेटी का अधिकार और कर्तव्य है। जब बेटी अपने माता-पिता की सेवा करना चाहती है, तो इसमें किसी प्रकार का संशय या बाधा नहीं होनी चाहिए।” महाराज जी ने यह भी स्पष्ट किया कि माता-पिता का बेटी के घर रहना, खाना, या पानी पीना किसी भी रूप में पाप नहीं है।

Premanand Ji Maharaj समाज के लिए एक बड़ा संदेश

Premanand Ji Maharaj के इस जवाब ने केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी एक बड़ा संदेश दिया। उन्होंने कहा, “समान अधिकार होने के कारण बेटी का कर्तव्य भी किसी भी रूप में बेटे से कम नहीं होना चाहिए।” यह समाज को यह समझाने की दिशा में एक अहम कदम है कि बेटा-बेटी के बीच भेदभाव करना न केवल अनुचित है, बल्कि यह मानवता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ भी है।

साथ ही, महाराज जी ने यह भी कहा कि माता-पिता की सेवा किसी भी रूप में की जा सकती है। यह सेवा उनके साथ प्रेम और सम्मान का प्रतीक है, और इसमें किसी प्रकार की कोई झिझक या डर नहीं होना चाहिए। समाज की पुरानी और गलत धारणाओं से ऊपर उठकर हमें सही दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

Premanand Ji Maharaj इस प्रवचन के माध्यम से प्रेमानंद जी महाराज ने यह संदेश दिया कि बेटियों का कर्तव्य और अधिकार किसी भी रूप में बेटों से कम नहीं है। हमें अपनी पुरानी और गलत मान्यताओं को छोड़कर बेटा-बेटी में समानता का विचार अपनाना चाहिए। समाज में जितनी भी अनावश्यक धारणाएं और भेदभाव हैं, उन्हें बदलने की जरूरत है, ताकि हर व्यक्ति को समान सम्मान और अधिकार मिले।

महाराज जी ने यह साफ किया कि बेटी का अपने माता-पिता की सेवा करना उसका धर्म है, और इसमें किसी प्रकार का पाप नहीं है। यह समाज के लिए एक बड़ा संदेश है, जो हमें समाजिक सोच में बदलाव लाने के लिए प्रेरित करता है।

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